'अलंकार' शब्द अलम्+ कार से बना है, जिसका अर्थ है- 'आभूषण या विभूषित करने वाला'|
*अलंकार के प्रकार*
1- शब्दालंकार
2- अर्थालंकार
3- आधुनिक/पाश्चात्य अलंकार
1-शब्दालंकार-
1-अनुप्रास अलंकार
2-यमक अलंकार
3-श्लेष अलंकार
. 4-वीप्साअलंकार
. (पुनरुक्तिप्रकाश)
5-वक्रोक्ति अलंकार
1-अनुप्रास अलंकार-
इसमें "व्यंजन वर्णों की आवृत्ति" होती है|
उदाहरण- 'तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये'
उक्त पंक्ति में "त" वर्ण की आवृत्ति है|
अनुप्रास अलंकार के भेद:-
1- छेकानुप्रास- अनेक व्यंजनों की 'एक बार' स्वरूपत: व क्रमत: आवृत्ति
उदा. 'बंदउ गुरु पद पदुम परागा,सुरुचि सुबास सरस अनुरागा'
यहाँ पद और सर की आवृत्ति है|
2- वृत्यानुप्रास-
अनेक व्यंजनों की 'अनेक बार' स्वरूपत: व क्रमत: आवृत्ति
उदाहरण- कलावती केलिवती कलिन्दजा...
'क' वर्ण की आवृत्ति है|
3- लाटानुप्रास- जहाँ 'शब्द' और 'अर्थ' दोनों की पुनरुक्ति हो
उदा. लड़का तो लड़का ही है|
(एक लड़का का अर्थ लिंग के संबंध में दूसरे का बच्चे के अर्थ में)
4- अंत्यानुप्रास-
इसमें पंक्ति के अन्त में अक्षरों की समानता होती है
उदा. प्रियतमे मेघ घनघोर रहे
(पहले शब्द प्रियतमे का अंतिम वर्ण "म" है उसी का अगला प्रारम्भिक वर्ण भी "म" है एेसे ही घनघोर का "र" तथा रहे का "र" मतलब ये है कि जो अन्तिम वर्ण होता है उसी से अगला शब्द शुरु होता है|)
5- श्रुत्यानुप्रास- जब किसी एक वर्ग के वर्णों की आवृत्ति होती है
(जैसे तवर्ग(त,थ,द,ध,न) के ही वर्ण उस पंक्ति में हों... |
2- यमक अलंकार
जहाँ एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग-अलग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है|
उदा. कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय|
वा खाए बौराय जग, या पाय बौराय||
यहाँ "कनक" शब्द दो बार आया है लेकिन दोनों का अर्थ अलग है(1- धतूरा 2- स्वर्ण/ सोना)
खाने के अर्थ में धतूरा और पाने के अर्थ में सोना, मतलब जब व्यक्ति धतूरा खा लेगा तो बौरा जायेगा और सोना पाकर भी बौरा जाता है|
3- श्लेष अलंकार
जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो, अर्थ अलग अलग हों, वहाँ श्लेष अलंकार होता है|
उदा. रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून,
पानी गये ना ऊबरै मोती मानुष चून|
यहां "पानी" शब्द तीन बार प्रयुक्त हुआ है, तीनों का अलग अर्थ है, अन्त की पंक्ति है मोती(चमक),मानुष(प्रतिष्ठा),चून(जल)
मोती में चमक होती है, प्रतिष्ठा का संबंध मनुष्य से है और चून मतलब सामान्य जल..|
4- वीप्सा अलंकार/ पुनरुक्ति प्रकाश
जहाँ शब्दों को दोहराया जाये, वहाँ वीप्सा अलंकार होगा| ( पुनरुक्ति का अर्थ ही होता है- दोहराना/ कही गयी बात को दोबारा कहना)
उदा. छिः छिः, राम-राम, चुप-चुप आदि|
5- वक्रोक्ति अलंकार
इसमें प्रत्यक्ष अर्थ के अतिरिक्त भिन्न अर्थ होता है
वक्रोक्ति के भी 2 प्रकार होते हैं-
1 श्लेषमूला वक्रोक्ति- श्लेष के द्वारा जहाँ अर्थ प्रकट हो, श्लेषमूला वक्रोक्ति होती है
उदा. कौन द्वार पर?
राधे, मैं हरि!
क्या वानर का काम यहाँ?
उक्त उदाहरण में राधा कह रही हैं कि द्वार पर कौन हैं तो कृष्ण कह रहे हैं राधे मैं हरि लेकिन राधा को लगा बन्दर है इसलिए वो कहती हैं यहाँ वानर का क्या काम है?
(हरि के दो अर्थ होते हैं- 1- कृष्ण, 2 - वानर/ बन्दर)
2- काकुवक्रोक्ति- काकु(ध्वनि विकार/ आवाज परिवर्तन) के द्वारा काकुवक्रोक्ति अलंकार होता है
उदा. रुको मत, जाओ|
रुको, मत जाओ|
उक्त उदाहरण में पहले वाक्य का अर्थ है कि रुकना नही है जाना है, दूसरे में कहा जा रहा है कि रुकना है जाना नहीं है लेकिन यदि ध्वनि/ आवाज पर ध्यान नहीं दिया जायेगा तो अर्थ का अनर्थ हो जायेगा ।
2- #अर्थालंकार
अर्थालंकार के प्रकार-
1- उपमा अलंकार**
2-प्रतीप अलंकार*
3- उपमेयोपमा अलंकार*
4- अनन्वय अलंकार*
5- संदेह अलंकार*
6- उत्प्रेक्षा अलंकार**
7- रूपक अलंकार
8- अपह्नुति अलंकार*
9- अतिशयोक्ति अलंकार *
10- उल्लेख अलंकार*
11- स्मरण अलंकार
12- भ्रांतिमान अलंकार*
13- दीपक अलंकार
14- प्रतिवस्तूपमा अलंकार
15- दृष्टान्त *
16- निर्दशना
17- व्यतिरेक *
18- सहोक्ति
19- विनोक्ति
20- समासोक्ति *
21- अन्योक्ति/ अप्रस्तुत *
22- पर्यायोक्ति
23- व्याजस्तुति
24- परिकराँकुर
25- आक्षेप
26- विरोधाभास*
27- विभावना*
28- विशेषोक्ति *
29- असंगति*
30- विषम
31- कारणमाला
32- एकावली
33- काव्यलिंग *
34- सार
35- अनुमान
36- यथासंख्य/क्रम*
37- अर्थापत्ति
38- परिसंख्या
39- सम
40- तद्गुण
41- अतद्गुण
42- मीलित*
43- उन्मीलित
44- सामान्य
45- स्वाभावोक्ति
46- व्याजोक्ति
47- अर्थान्तरन्यास*
48- लोकोक्ति*
49- उदाहरण*
50- तुल्ययोगिता
51- परिकर
1 * द्वारा चिह्नित महत्वपूर्ण तथा 2 द्वारा चिह्नित अतिमहत्वपूर्ण अलंकार हैं|
चिह्नित अलंकारों को ही विस्तार से बताया गया है|
1-उपमा अलंकार-
भिन्न पदार्थों का सादृश्य उपस्थित किया जाये वहाँ, उपमा अलंकार होता है|
उपमा के 4 अंग होते हैं-
A-उपमेय/प्रस्तुत- जिसकी उपमा दी जाय(मुख)
B-उपमान/अप्रस्तुत- जिससे उपमा दी जाय(चाँद/चन्द्र)
C- समान धर्म/ गुण- उपमेय और उपमान में पाया जाने वाला उभयनिष्ठ गुण (सुन्दर)
D- सादृश्य वाचक शब्द- उपमेय व उपमान की समता बताने वाला शब्द(सा,जैसा,समान)
उदाहरण- सीता का मुख चन्द्र के समान सुन्दर है|
उपमा के भी 2 भेद होते हैं-
क- पूर्णोपमा- जिसमें उपमा के चारों अंग मौजूद हों,
उदा. मुख चन्द्र सा सुन्दर है |
ख- लुप्तोपमा- जहाँ उपमा के किसी एक या दो अंग का लोप(अनुपस्थित)हो,
उदा. मुख चन्द्र सा है| (यहाँ सुन्दर(समान धर्म का) लोप है|
2- प्रतीप अलंकार-
ये उपमा का विपरीत होता है| यहाँ उपमान को उपमेय बना दिया जाता है
उदा. मुख सा चन्द्र है|
3- उपमेयोपमा अलंकार- प्रतीप+ उपमा अर्थात् ये प्रतीप और उपमा का मिलाजुला रूप है
उदा. मुख सा चंद्र और चंद्र सा मुख|
4- अनन्वय अलंकार- एक ही वस्तु को उपमेय और उपमान दोनों कहना
उदा. मुख मुख ही सा है|
राम से राम, सिया सी सिया|
5- संदेह अलंकार- उपमेय में उपमान का संदेह
उदा. यह मुख है या चन्द्र|
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी, सारी ही की नारी है या नारी की ही सारी|
6- उत्प्रेक्षा अलंकार-
जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना हो
इसकी पहचान कुछ इन शब्दों से की जाती है(मानो,मनहु,मनु,जानो,जनु,जनहु)
उदा. मुख मानो चन्द्र है|
7- रूपक अलंकार-
उपमेय में उपमान का आरोप होने पर(निषेधरहित आरोप)
उदा. मुख चन्द्र है|
8- अपह्नुति अलंकार-
उपमेय में उपमान का आरोप (निषेधसहित)
उदा. यह मुख नहीं चन्द्र है|
9- अतिशयोक्ति अलंकार-
उपमेय न होकर केवल उपमान के साथ अभिन्नता प्रदर्शित करना( बहुत बढ़ा चढ़कर कही गयी बात)
उदा. यह चन्द्र है|
10- उल्लेख अलंकार- विषय भेद से एक वस्ति का अनेक प्रकार से वर्णन(उल्लेख)
उदा. उसके मुख ह
को कोई कमल कोई चन्द्र कहता है|
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी..... |
11- भ्रांतिमान अलंकार- सादृश्यता के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लेना( यानी भ्रम हो जाना)
उदा. नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाड़िम का समझ भ्रांति से,
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,सोचता है यह अन्य शुक कौन है|
ध्यान दें:-
संदेह और भ्रांतिमान में अन्तर-
भ्रांतिमान में सादृश्यता का आभास सत्य मान लिया जाता ह(जैसेै शुक ने भ्रम के कारण दूसरे शुक को ही मान लिया है) जबकि संदेह में दुविधा(संदेह) बनी रहती है कि ये होगा या वो? (जैसे- सारी है या नहीं इसमें बात स्पष्ट नहीं है यानी संदेह बना हुआ है)
12- दृष्टान्त अलंकार- उपमेय-उपमान में बिम्ब+प्रतिबिम्ब भाव( भाव साम्य- एक की आशय की दो भिन्न अभिव्यक्ति)
उदा. उसका मुख निसर्ग(प्राकृतिक रूप) सुन्दर है,चंद्रमा को प्रसाधन की क्या आवश्यकता?
मूल आशय- सुन्दर वस्तु का स्वाभाविक रूप से सुन्दर लगना|
13-व्यतिरेक अलंकार- उपमान की अपेक्षा उपमेय का व्यतिरेक अर्थात् उत्कर्ष वर्णन
उदा. चन्द्र सकलंक,मुख निष्कलंक, दोनों में समता कैसी?
14- समासोक्ति अलंकार- प्रस्तुत के माध्यम से अप्रस्तुत का वर्णन
उदा. चंप लता सुकुमार तू, धन तुव भाग्य बिसाल|
तेरे ढिग सोहत सुखद,सुन्दर स्याम तमाल||
अर्थात् अरी चम्पक लता! तू बड़ी कोमल है, तू धन्य और बड़ी भाग्यशालिनी है जो तेरे समीप सुखद,सुन्दर श्याम तमाल शोभा दे रहे हैं| (प्रत्यक्ष)
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