RPSC FIRST GRADE 1857 का स्वतंत्रता संग्राम


 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण तथ्य

RPSC First Grade परीक्षा की तैयारी के लिए 1857 के संग्राम से जुड़े निम्नलिखित तथ्य ध्यान दें:

विद्रोह का प्रारंभ और तिथि

तिथि: 10 मई 1857

स्थान: मेरठ से शुरुआत

प्रमुख कारण

1. सामाजिक: भारतीय परंपराओं और रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप।

2. धार्मिक: गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस (एनफील्ड राइफल्स) ने धार्मिक भावनाओं को आहत किया।

3. राजनीतिक: हड़प नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स) और बहादुर शाह ज़फ़र को अंतिम मुगल सम्राट मानने से इनकार।

4. आर्थिक: किसानों पर भारी कर और पारंपरिक उद्योगों का पतन।

मुख्य विद्रोही नेता और केंद्र

ब्रिटिश नेताओं की भूमिका

कॉलिन कैंपबेल: लखनऊ को पुनः कब्जाने में अहम भूमिका।

जॉन निकोलसन: दिल्ली पर पुनः नियंत्रण।

हेनरी लॉरेंस: लखनऊ छावनी का नेतृत्व।

विद्रोह के मुख्य परिणाम

1. ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत: भारत का प्रशासन ब्रिटिश क्राउन को सौंपा गया।

2. भारत सरकार अधिनियम 1858: वायसराय की नियुक्ति हुई।

3. सैन्य सुधार: सेना में भारतीय और ब्रिटिश सैनिकों का अनुपात बदला गया।

4. धार्मिक और सामाजिक नीति में परिवर्तन: भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का सम्मान करना शुरू किया गया।

विद्रोह के असफलता के कारण

1. नेतृत्व की कमी: विद्रोह का कोई केंद्रीय नेतृत्व नहीं था।

2. संसाधनों की कमी: आधुनिक हथियार और पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं थे।

3. आंतरिक फूट: भारतीय राजाओं और जमींदारों का ब्रिटिशों को समर्थन।

4. ब्रिटिश ताकत: ब्रिटिश सेना की संगठित रणनीति।

प्रमुख तिथियां

29 मार्च 1857: मंगल पांडे ने बैरकपुर में विद्रोह का संकेत दिया।

10 मई 1857: मेरठ से विद्रोह की शुरुआत।

20 जून 1858: रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान।

8 जुलाई 1858: संग्राम का आधिकारिक अंत (ब्रिटिश घोषणा के अनुसार)।

महत्वपूर्ण तथ्य

1. इसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है।

2. इस विद्रोह को कार्ल मार्क्स ने "राष्ट्रीय और सामाजिक विद्रोह" कहा।

3. ब्रिटिशों ने इसे सिपाही विद्रोह कहा।

4. "द ग्रेट रिबेलियन" के रूप में भी जाना जाता है।

5. विद्रोह के दौरान मुख्य भाषा उर्दू थी।

तैयारी टिप्स

1. विद्रोह के कारण, केंद्र और नेताओं को याद करें।

2. असफलता के कारणों और परिणामों का अध्ययन करें।

3. ब्रिटिश और भारतीय पक्षों की रणनीतियों पर ध्यान दें।

4. तथ्यों को याद रखने के लिए चार्ट और नोट्स बनाएं।

5. प्रमुख तिथियों और घटनाओं को समय रेखा (Timeline) में व्यवस्थित करें।

महत्वपूर्ण पुस्तकें और स्रोत

वी.डी. सावरकर: "1857 का स्वतंत्रता संग्राम"

एस.एन. सेन: "Eighteen Fifty-Seven"

कार्ल मार्क्स के लेख 

इन तथ्यों और स्रोतों को ध्यान में रखकर अध्ययन करें।


RPSC FIRST GRADE मौर्य साम्राज्य


 मौर्य साम्राज्य (321 ई.पू.–185 ई.पू.)

मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत का सबसे पहला और सबसे बड़ा राजनीतिक साम्राज्य था। इसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी और यह साम्राज्य मौर्य वंश के तीन प्रमुख शासकों—चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार, और अशोक महान—के शासनकाल में अपनी चरम सीमा पर पहुँचा।

1. मौर्य साम्राज्य की स्थापना

1. चंद्रगुप्त मौर्य (321 ई.पू.–297 ई.पू.):

संस्थापक: चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश के आखिरी शासक धनानंद को हराकर मगध में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

राजनीतिक सहयोग: चाणक्य (कौटिल्य/विष्णुगुप्त) उनके प्रमुख सलाहकार और रणनीतिकार थे।

सैन्य अभियान:

सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्यूकस निकेटर को हराकर काबुल, गंधार और बलूचिस्तान पर अधिकार किया।

सेल्यूकस से संधि के तहत चंद्रगुप्त को उनकी बेटी से विवाह और 500 हाथी मिले।

शासन और प्रशासन:

शक्तिशाली केंद्रीकृत शासन।

चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें राजनीति, अर्थव्यवस्था, और प्रशासन की विस्तृत जानकारी है।

अंतिम समय: चंद्रगुप्त ने जैन धर्म अपनाया और श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में संन्यास लिया।

2. बिंदुसार (297 ई.पू.–273 ई.पू.)

1. उत्तराधिकार:

चंद्रगुप्त के बाद उनका पुत्र बिंदुसार शासक बना।

उन्हें "अमित्रघात" (शत्रु-विनाशक) कहा जाता है।

2. सैन्य अभियान:

बिंदुसार ने दक्षिण भारत के कई राज्यों को मौर्य साम्राज्य में शामिल किया।

चोल, पांड्य और चेर साम्राज्यों को छोड़कर अधिकांश दक्षिण भारत को मौर्य साम्राज्य में शामिल किया गया।

3. विदेशी संबंध:

यूनानी राजाओं के साथ अच्छे संबंध बनाए।

यूनानी राजदूत डायमेकस उनके दरबार में आया।

4. मृत्यु: बिंदुसार की मृत्यु के बाद अशोक ने सत्ता संभाली।

3. अशोक महान (273 ई.पू.–232 ई.पू.)

अशोक मौर्य वंश का सबसे महान शासक था और वह अपने धर्म, नीति और धम्म प्रचार के लिए प्रसिद्ध है।

1. प्रारंभिक शासनकाल:

प्रारंभ में अशोक एक महत्वाकांक्षी और क्रूर शासक था।

उसने कुरीतियों और विद्रोहों का दमन किया।

2. कलिंग युद्ध (261 ई.पू.):

अशोक ने कलिंग (आधुनिक ओडिशा) पर आक्रमण किया।

युद्ध में 1 लाख लोग मारे गए और 1.5 लाख लोग कैद हुए।

इस नरसंहार से अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ और उसने युद्ध का मार्ग छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया।

3. धम्म नीति:

अशोक ने अपनी धम्म नीति के तहत समाज में नैतिकता, अहिंसा, और धर्म का प्रचार किया।

उसने स्तूपों, विहारों और अशोक स्तंभों का निर्माण करवाया।

अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए मिशनरियों को श्रीलंका, दक्षिण-पूर्व एशिया, और पश्चिमी देशों में भेजा।

4. शासन और प्रशासन:

प्रांतों में राजुक (राज्यपाल) नियुक्त किए।

सामाजिक सुधार: जाति भेदभाव और पशु बलि पर रोक लगाई।

5. अशोक के अभिलेख:

अशोक ने अपने आदेशों और धम्म की शिक्षाओं को शिलालेखों, स्तंभ लेखों और गुफा लेखों पर खुदवाया।

ये लेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए।

प्रमुख स्थान: सोपारा, गिरनार, कंधार।

4. मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था

मौर्य साम्राज्य का प्रशासन केंद्रीकृत और सुव्यवस्थित था।

1. राजा:

राजा सर्वोच्च अधिकारी था।

धर्म, नीति, और प्रशासन में राजा की मुख्य भूमिका थी।

2. मंत्रिपरिषद:

मंत्रियों का समूह राजा को सलाह देता था।

3. प्रांतीय प्रशासन:

साम्राज्य को कई प्रांतों में विभाजित किया गया।

प्रमुख प्रांत: मगध, अवंती, तक्षशिला।

4. सेना:

विशाल सेना जिसमें पैदल सैनिक, घुड़सवार, हाथी और रथ शामिल थे।

5. राजस्व व्यवस्था:

भूमि कर प्रमुख था।

व्यापार, उद्योग और कृषि से भी कर वसूला जाता था।

6. गुप्तचर प्रणाली:

प्रशासन को प्रभावी बनाने के लिए एक मजबूत गुप्तचर तंत्र था।

5. मौर्य साम्राज्य की कला और संस्कृति

1. अशोक स्तंभ:

अशोक ने अपने आदेशों को स्तंभों पर खुदवाया।

सारनाथ का सिंह स्तंभ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।

2. बौद्ध वास्तुकला:

स्तूपों का निर्माण:

प्रमुख स्तूप: साँची स्तूप, बोधगया।

विहारों का निर्माण।

3. शिल्प और मूर्तिकला:

पत्थर की मूर्तियों और नक्काशी में उत्कृष्टता।

6. मौर्य साम्राज्य का पतन

1. कारण:

अशोक की मृत्यु के बाद कमजोर उत्तराधिकारी।

विशाल साम्राज्य का कुशल प्रबंधन न होना।

ब्राह्मण वर्ग का विरोध।

आर्थिक कठिनाइयाँ।

2. अंतिम शासक:

अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ को उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की।

7. मौर्य साम्राज्य का महत्व

1. प्रथम केंद्रीकृत साम्राज्य।

2. राजनीतिक और प्रशासनिक संगठन का उदाहरण।

3. अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार विश्व स्तर पर।

4. भारतीय कला और संस्कृति का उत्कर्ष।

निष्कर्ष

मौर्य साम्राज्य ने भारत को एक संगठित राजनीतिक संरचना और सांस्कृतिक विरासत प्रदान की। अशोक की धम्म नीति और बौद्ध धर्म के प्रसार ने इसे न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया में अमर बना दिया।


RPSC FIRST GRADE गुप्त काल

 गुप्त काल (लगभग 320 से 550 ईस्वी) भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग माना जाता है। इस काल में साहित्य, कला, विज्ञान, धर्म और शासन के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ। इसे "क्लासिकल युग" भी कहा जाता है। आइए गुप्त काल को विस्तार से समझते हैं:


1. गुप्त साम्राज्य का उदय

गुप्त साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त प्रथम (320-335 ईस्वी) ने की।

उसकी शादी लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी से हुई, जिसने उनके साम्राज्य को राजनीतिक और सामाजिक रूप से सुदृढ़ किया।

समुद्रगुप्त (335-375 ईस्वी) को गुप्त काल का नेपोलियन कहा जाता है। उनकी विजय यात्राओं ने साम्राज्य को अखिल भारतीय स्वरूप दिया।

चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य): इनके शासनकाल में कला, साहित्य और संस्कृति का चरम विकास हुआ।

2. प्रशासन और शासन व्यवस्था

राजतंत्र: राजा सर्वोच्च शासक था।

केंद्रीय प्रशासन: साम्राज्य को प्रांतों (भुक्ति) में विभाजित किया गया।

सामंत व्यवस्था: स्थानीय स्तर पर सामंतों को शासन का जिम्मा सौंपा गया।

कर प्रणाली: कृषि से कर, व्यापार कर, खनिज कर प्रमुख थे।

3. सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था

सामाजिक व्यवस्था: वर्ण व्यवस्था को बढ़ावा मिला। ब्राह्मणों का विशेष सम्मान था।

धर्म: हिंदू धर्म का पुनरुत्थान। शिव और विष्णु की पूजा का प्रचलन बढ़ा।

बौद्ध धर्म और जैन धर्म: इनका भी पालन किया गया।

धर्मशास्त्र: इस काल में अनेक धर्मशास्त्र लिखे गए।

नारी की स्थिति: सामान्यतः महिलाएँ घर तक सीमित थीं, लेकिन राजकुमारियों को शिक्षा दी जाती थी।

4. साहित्य और शिक्षा

संस्कृत भाषा का उत्थान: गुप्त काल को संस्कृत साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है।

प्रमुख लेखक और उनकी कृतियाँ:

कालिदास: अभिज्ञान शाकुंतलम्, मेघदूतम्, रघुवंशम्।

विशाखदत्त: मुद्राराक्षस।

शूद्रक: मृच्छकटिकम्।

अमर सिंह: अमरकोश।

नालंदा विश्वविद्यालय: यह शिक्षा का मुख्य केंद्र था।

5. कला और वास्तुकला

मंदिर निर्माण:

प्रारंभिक मंदिर शैली का विकास।

देवगढ़ (उत्तर प्रदेश) में दशावतार मंदिर।

मूर्ति कला:

बौद्ध, हिंदू और जैन मूर्तियों का निर्माण।

सांची और सारनाथ में उत्कृष्ट मूर्तियाँ।

चित्रकला:

अजंता की गुफाओं में भित्ति चित्र।

सिक्के:

स्वर्ण मुद्राएँ चलाई गईं, जिन पर शासकों और देवताओं के चित्र थे।

6. विज्ञान और गणित

आर्यभट्ट:

उन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ लिखा।

दशमलव पद्धति और शून्य का उपयोग।

ग्रहण की वैज्ञानिक व्याख्या।

वराहमिहिर:

पंचसिद्धांतिका ग्रंथ।

खगोलशास्त्र और ज्योतिष पर कार्य।

चिकित्सा:

धवला और सुश्रुत जैसे चिकित्सा ग्रंथ।

7. गुप्त साम्राज्य का पतन

हूणों के आक्रमण: 5वीं शताब्दी के मध्य में हूणों के हमले।

आंतरिक संघर्ष: सामंतवाद के कारण प्रशासन कमजोर हो गया।

साम्राज्य का विभाजन: गुप्त साम्राज्य छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया।

गुप्त काल की विशेषताएँ

1. साहित्य, कला और विज्ञान का स्वर्ण युग।

2. हिंदू धर्म का पुनरुत्थान।

3. साम्राज्य के विस्तार में समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय की भूमिका।

4. स्थापत्य और मूर्तिकला में उत्कृष्टता।

निष्कर्ष

गुप्त काल भारत के सांस्कृतिक और बौद्धिक इतिहास का सबसे गौरवशाली अध्याय है। यह भारतीय सभ्यता के उस दौर को दर्शाता है, जब कला, विज्ञान और धर्म का अद्भुत संगम हुआ। RPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से, गुप्त काल के साहित्य, कला, विज्ञान और प्रशासन को विशेष रूप से पढ़ना चाहिए।


RPSC FIRST GRADE सिन्धु घाटी सभ्यता

 सिन्धु घाटी सभ्यता (2500 ई.पू.–1700 ई.पू.)



सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, विश्व की सबसे प्राचीन और उन्नत शहरी सभ्यताओं में से एक है। इसका विस्तार आज के पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों तक था। यह सभ्यता सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे विकसित हुई।


1. खोज और महत्व

1. खोज:

1921 में हड़प्पा (पाकिस्तान) की खोज दयाराम साहनी ने की।

1922 में मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) की खोज राखालदास बनर्जी ने की।

यह सभ्यता ताम्रपाषाण युग (कॉपर एज) का प्रतिनिधित्व करती है।

2. भौगोलिक विस्तार:

उत्तर में जम्मू-कश्मीर के मांड (भारत)

दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट्र, भारत)।

पूर्व में आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश, भारत)।

पश्चिम में सोत्काकोह (बलूचिस्तान, पाकिस्तान)

3. समयकाल:

2500 ई.पू. से 1700 ई.पू. (लगभग 800 वर्ष)।

4. महत्व

विश्व की पहली सुव्यवस्थित शहरी सभ्यता।

नगर योजना, वास्तुकला और जल प्रबंधन में अद्वितीय।

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2. नगर और उनकी विशेषताएँ

सिन्धु घाटी सभ्यता के नगर अत्यधिक संगठित और सुव्यवस्थित थे।

1. नगर योजना:

नगर को दो भागों में विभाजित किया गया था

ऊपरी भाग (गढ़): प्रशासनिक और धार्मिक कार्यों के लिए।

निचला भाग: सामान्य निवासियों के लिए।

ग्रिड पैटर्न में सड़कों की व्यवस्था।

सड़कों का आकार: मुख्य सड़कें 10 मीटर चौड़ी।

2. नालियों और जल निकासी प्रणाली:

प्रत्येक घर से नाली जुड़ी हुई।

ढकी हुई नालियाँ, जिनकी सफाई की व्यवस्था थी।

3. इमारतें:

पक्की ईंटों का उपयोग।

महत्वपूर्ण इमारतें:

ग्रेट बाथ (मोहनजोदड़ो): स्नान के लिए प्रयोग।

अनाज भंडार (हड़प्पा): अनाज संग्रह के लिए।

सामान्य घर: 1-2 मंजिला।

4. प्रमुख स्थल और उनकी विशेषताएँ

हड़प्पा: अनाज भंडार और पक्की सड़कें।

मोहनजोदड़ो: ग्रेट बाथ और सुव्यवस्थित जल प्रबंधन

कालीबंगा: हल चलाने के प्रमाण।

लोथल: प्राचीन बंदरगाह और जलनालियां।

धौलावीरा: जल प्रबंधन प्रणाली।

राखीगढ़ी: यह स्थल अब तक खोजा गया सबसे बड़ा शहर है।

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3. सामाजिक व्यवस्था

1. सामाजिक संरचना:

समाज व्यवसाय आधारित था।

वर्ग विभाजन स्पष्ट नहीं था।

2. पहनावा:

सूती और ऊनी वस्त्र।

महिलाएं गहने (चूड़ियाँ, हार, कंगन) पहनती थीं।

3. भोजन:

मुख्य भोजन: गेहूं, जौ, चावल, मांस, मछली, दूध।

फल और सब्जियों का उपयोग।

4. खेल:

पासा, मिट्टी के खिलौने।

मोहनजोदड़ो में शतरंज का प्रारंभिक रूप।

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4. आर्थिक व्यवस्था

1. कृषि:

गेहूं, जौ, सरसों, कपास, चावल (लोथल में)।

सिंचाई के लिए नहरों और जलाशयों का प्रयोग।

हल चलाने के प्रमाण (कालीबंगा)।

2. शिल्प और उद्योग:

बर्तन बनाने, वस्त्र उत्पादन, गहने और मोहरें बनाना।

तांबे, कांसे और पत्थर के औजार।

3. व्यापार

आंतरिक और बाहरी व्यापार।

मेसोपोटामिया (इराक) के साथ व्यापार।

मुद्रा के रूप में बार्टर सिस्टम (वस्तु विनिमय)।

लोथल में बंदरगाह का निर्माण।

4. मोहरें (Seals):

मुख्यतः पशु आकृतियाँ: बैल, गैंडा, हाथी।

व्यापार में प्रयोग और धार्मिक महत्व।

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5. धार्मिक विश्वास

1. प्रकृति पूजा:

मातृ देवी की पूजा।

पीपल वृक्ष और पशुओं का सम्मान।

2. पशुपति महादेव:

शिव के आरंभिक रूप के प्रमाण।

3. यज्ञ का प्रमाण नहीं:

कर्मकांड आधारित धर्म नहीं था।

4. मृत्यु संस्कार:

शवों को जलाना या दफनाना।

मोहनजोदड़ो में समाधि के प्रमाण।

---

6. कला और संस्कृति

1. मूर्ति और शिल्प:

नर्तकी की कांस्य मूर्ति (मोहनजोदड़ो)।

बैल की पत्थर की मूर्ति।

2. चित्रित बर्तन:

लाल और काले रंग के चित्रित बर्तन।

3. संगीत और नृत्य:

नृत्य और संगीत के प्रतीक।

---

7. पतन के कारण

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के अनेक कारण हो सकते हैं:

1. जलवायु परिवर्तन:

नदी मार्ग बदलने और बाढ़।

2. आर्यों का आगमन:

बाहरी आक्रमण।

3. आंतरिक समस्याएँ:

आर्थिक और सामाजिक गिरावट।

4. संपर्कों का टूटना:

व्यापार मार्गों में बाधा।

---

8. सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ

1. प्रथम शहरीकरण।

2. संगठित जल निकासी प्रणाली।

3. उन्नत वास्तुकला और नगर योजना।

4. धार्मिक और सामाजिक समरसता।

---

निष्कर्ष

सिन्धु घाटी सभ्यता ने न केवल भारतीय इतिहास की नींव रखी, बल्कि इसे विश्व इतिहास में भी एक अद्वितीय स्थान प्रदान किया। इसकी शहरी योजना, सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक विकास आधुनिक समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।


भारत का इतिहास - वन लाइनर

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आधुनिक भारत का इतिहास handwritten coaching notes free pdf

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प्राचीन भारत का इतिहास - भारत के धर्म Handwritten coaching notes free pdf

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प्राचीन भारत का इतिहास - भारतीय इतिहास के स्त्रोत Handwritten coaching notes free pdf

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नवीन हिन्दी व्याकरण एवं रचना free book pdf

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REET राजस्थान का भूगोल - राजस्थान की सिंचाई परियोजना Handwritten coaching notes free pdf

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REET राजस्थान का भूगोल - राजस्थान के खनिज handwritten coaching notes free pdf

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REET राजस्थान का भूगोल- राजस्थान के भौतिक प्रदेश handwritten coaching notes free pdf

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REET राजस्थान का भूगोल - स्थिति एवं विस्तार handwritten coaching notes free pdf

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REET राजस्थान का इतिहास handwritten coaching notes free pdf

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REET राजस्थान का भूगोल handwritten coaching notes free pdf

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