शिक्षा मनोविज्ञान - शिक्षण - कार्य

सृष्टि में जितने भी कार्य होते है , वे सभी अपने आप में एक समस्या के रूप में होते हैं और समस्या के समय प्रत्येक प्राणी समाधान का प्रयास करता है तथा किसी भी समस्या का समाधान चिन्तन के द्वारा प्राप्त होता है।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हम्प्रे के अनुसार , " चिंतन का जन्म समस्या के समय होता है , क्योंकि समस्या के समय प्राणी को लक्ष्य का मार्ग दिखायी नहीं देता। "

शिक्षक के द्वारा किया जाने वाला कार्य शिक्षण कहलाता है , जो कि स्वयं में समस्या है।  इसके लिए शिक्षक को सोचना पड़ता है कि क्या पढ़ाना है? किसको पढ़ाना है? कैसे पढ़ाना है? आदि।

चिंतन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है-

1. स्वली चिन्तन - यह काल्पनिक एवं अवास्तविक चिंतन होता है , जिससे समस्या का समाधान नहीं मिल पाता।

2. यथार्थ चिंतन - यह यथार्थ और वास्तविक चिंतन होता है , जो समाधान की प्राप्ति करवाता है।

प्रत्येक शिक्षक में यथार्थ चिंतन पाया जाता है। यह तीन प्रकार का होता है , इसके अनुसार शिक्षक तीन श्रेणी के हो सकते हैं -

1. सामान्य शिक्षक ( अभिसारी / मूर्त चिंतन वाले / निगमनात्मक )

2. अच्छे शिक्षक (अपसारी / अमूर्त चिंतन वाले / आगमनात्मक )

 3. सर्वश्रेष्ठ शिक्षक ( आलोचनात्मक चिंतन वाले )

शिक्षण कार्य  सामान्य कार्य नहीं हैं। यह तो आत्मविश्वास एवं सम्प्रेषण के द्वारा होने  वाला एक विशिष्ट कार्य है।

डॉक्टर  एन एन मुखर्जी के अनुसार , " शिक्षण कार्य प्रत्येक व्यक्ति के चाय  प्याले के सामान नहीं है , बल्कि यह तो कला और विज्ञान है। "

शिक्षण : एक प्रक्रिया 

शिक्षण अपने आप में केवल कार्य नहीं होकर एक प्रक्रिया है , क्योकि यह केवल एक व्यक्ति से पूरी नहीं हो पाती।  

मॉरिसन के अनुसार , " शिक्षण वह प्रक्रिया है , जिसमे एक अधिक परिपक्व व्यक्ति अन्तः सम्बन्धो द्वारा एक कम परिपक्व व्यक्ति को सिखाने का प्रयास करता है।  "

जैक्सन के अनुसार , " शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है , जिसमे एक परिपक्व व्यक्ति ( शिक्षक ) एक अपरिपक्व व्यक्ति ( शिक्षार्थी ) को अन्तः क्रिया के द्वारा शिक्षा प्रदान करता है। "

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