गुप्तकालीन साहित्य , कला व विज्ञान का विकास
समय -
गुप्तकाल - 275 से 550 AD
श्रीगुप्त - 275 से 300 AD
घटोत्कच - 300 से 319 AD
चन्द्रगुप्त प्रथम - 319 से 350 AD
समुद्रगुप्त - 350 से 375 AD
चन्द्रगुप्त द्वितीय ' विक्रमादित्य ' - 375 से 412 AD
कुमारगुप्त
स्कन्दगुप्त
अंतिम राजा - कुमारगुप्त तृतीय।
चन्द्रगुप्त प्रथम -
गुप्तवंश का वास्तविक संस्थापक।
गुप्त संवत 319 ईस्वी में चन्द्रगुप्त प्रथम ने चलाया।
वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी के साथ विवाह।
उपाधि - महाराजाधिराज। यह उपाधि पहली बार इसी को मिली।
चन्द्रगुप्त द्वितीय -
फाह्यान ( 399 से 414 ) ने कहीं भी राजा का नाम नहीं लिखा।
फाह्यान और चन्द्रगुप्त द्वितीय का समय समान होने के कारण माना जाता है कि इसने जो लिखा , वो चन्द्रगुप्त द्वितीय के बारे में ही लिखा होगा।
चन्द्रगुप्त द्वितीय का पहला अभिलेख -
मथुरा लेख - 61 गुप्त संवत - 375
अंतिम अभिलेख -
साँची लेख - 93 गुप्त संवत - 412
नवरत्न - धन्वन्तरि , क्षपणक , अमरसिंह , शंकु , वेतालभट्ट , घटकर्पण , वराह मिहिर , वररुचि और कालिदास।
गुप्तकाल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग
सामान्यतः गुप्तकाल को साहित्य , कला व विज्ञान के विकास के कारण स्वर्णयुग कहा जाता है।
गुप्तकाल को श्रेण्य युग , क्लासिकल एज , शास्त्रीय युग , गोल्डन एज ( स्वर्णयुग ) पेरिक्लीज युग व एलिजाबेथ युग भी कहा जाता है।
गुप्त काल को श्रेण्य युग ( क्लासिकल ) कहा जाता है।
क्लासिकल - शास्त्रीय।
शास्त्रीय भाषा - संस्कृत।
गुप्तकाल में अधिकांश साहित्य भारत की शास्त्रीय भाषा संस्कृत में लिखा गया।
बार्नेट ने गुप्तकाल को पेरिक्लीज युग कहा है।
पेरिक्लीज यूनानी शासक था , जिसके काल में साहित्य , कला और विज्ञान की काफी उन्नति हुई।
विंसेंट स्मिथ ने गुप्तकाल की तुलना एलिजाबेथ युग से की है।
एलिजाबेथ इंग्लैंड की महारानी थी।
गुप्तकाल को स्वर्णयुग मानने वाले विद्वान -
आर. सी. मजूमदार ( रमेश चंद्र मजूमदार ) , मेहेण्डल , विंसेंट स्मिथ , बार्नेट व श्री राम गोयल ने गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहा है।
गुप्तकाल को स्वर्णयुग नहीं मानने वाले विद्वान -
वर्तमान में कई विद्वान गुप्तकाल को स्वर्णयुग नहीं मानते हैं। उनके अनुसार , गुप्तकाल स्वर्णयुग - एक कपोल कल्पित अवधारणा है।
उनके अनुसार वही काल स्वर्णयुग कहलाना चाहिये , जिसके अन्तर्गत हमें चंहुमुखि विकास नजर आता हो।
रोमिला थापर ( महिला ) , डी एन झा , डी डी कौशाम्बी व आर एस ( रामशरण ) शर्मा जैसे विद्वान गुप्तकाल को स्वर्णयुग नहीं मानते।
रोमिला थापर के अनुसार , " जिस काल में साहित्य , कला व विज्ञान चरम के उस उत्कर्ष पर पंहुच जाए , जहाँ पर भावी पीढियां उसका अनुसरण कर सके , उस काल को स्वर्णयुग कहा जाना चाहिए। "
गुप्तकाल के पतन का प्रमुख कारण -
सामन्तवाद का उदय।
गुप्तकालीन साहित्य
कालिदास -
भारत का शेक्सपियर।
चन्द्रगुप्त द्वितीय ' विक्रमादित्य ' के नवरत्नों में से एक।
फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय भारत आया था। लेकिन चन्द्रगुप्त के दरबार से उसका कोई संबंध नहीं रहा।
कालिदास ने महाकाव्य , खण्डकाव्य और नाटक लिखे।
खंडकाव्य -
ऋतुसंहार -
कालिदास की सबसे पहली रचना।
6 खण्डों में विभक्त।
6 ऋतुओं ( सर्दी , गर्मी , वर्षा , हेमन्त , शिशिर , बसन्त ) का वर्णन।
साहित्य की दृष्टि से अपरिपक्व रचना।
मेघदूत -
दो भागों ( पूर्वमेघ व उत्तरमेघ ) में विभक्त रचना।
कुबेर के शाप के कारण एक यक्ष रामगिरि पर्वत पर पहुँचता है और वहाँ से अपनी प्रेयसी कांता के लिए सन्देश भेजता है।
महाकाव्य -
कुमारसम्भव -
17 सर्गों में विभाजित।
शिव - पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की कथा।
रघुवंश -
अग्नि वर्ण से लेकर राजा दिलीप तक के 40 राजाओं का वर्णन।
19 सर्गों में विभाजित।
नाटक -
मालविकाग्निमित्र -
5 अंकों में विभाजित।
पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र व दासी मालविका की प्रेम कहानी।
विदेशी आक्रमणकारियों के बारे में जानकारी।
विदेशी बैक्ट्रियन ग्रीक ( बैक्ट्रिया या बल्ख के यूनानी ) -
इंडो ग्रीक या हिन्द यवन शासक।
उत्तर मौर्यकाल या पूर्व गुप्तकाल ( 184 BC से 275 AD ) में भारत के आक्रान्ता।
बैक्ट्रियन शासक - डेमेट्रियस व मिनांडर।
शुंगवंश के पुष्यमित्र शुंग ने डेमेट्रियस को परास्त किया।
विक्रमोर्वशीयम -
5 अंकों में विभाजित।
उर्वशी और पुरुरवा की प्रेम कहानी।
कथानक ऋग्वेद व शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ से लिया गया है।
अभिज्ञान शाकुन्तलम -
कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना।
7 अंकों में विभाजित।
हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत व कण्व ऋषि की कन्या शकुंतला की कथा।
दुष्यंत के विचारों में खोयी शकुंतला दुर्वासा ऋषि का सत्कार नहीं कर पाती है।
दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण दुष्यंत शकुंतला को भूल जाते है।
कालांतर में शकुंतला मारीच ऋषि के आश्रम में चली जाती है।
मारीच के आश्रम में ही शकुंतला के पुत्र भरत का जन्म हुआ।
हस्तिनापुर वर्तमान मेरठ के पास था।
सुखान्त नाटक।
कथानक महाभारत के आदिपर्व से लिया गया है।
जर्मन कवि गेटे ने भी इस नाटक की प्रशंसा की है।
विष्णु शर्मा -
समय - 275 से 550 ईस्वी।
गुप्तकाल के विद्वान। किन्तु किस शासक के समय थे , इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता।
इनके द्वारा रचित पंचतंत्र का सर्वाधिक विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ।
5 भागों में विभक्त -
मित्रभेद
मित्रलाभ
सन्धि विग्रह
लब्ध प्रमाण
प्रतिष्ठित कारक
पंचतंत्र का फारसी भाषा में अनुवाद ' अनवार सुहेल ' नाम से हुआ है।
पंचतंत्र की एक कहानी का फारसी भाषा में अनुवाद - कलीला दमना।
कलीला दमना दो भेड़ियों ( सियारों या गीदड़ ) के नाम है।
शूद्रक -
किस शासक के दरबार में थे , कोई प्रमाण नहीं मिलता।
मृच्छकटिकम -
चारुदत्त नामक ब्राह्मण की कथा।
चारुदत्त व्यापारी और हत्यारा था , लेकिन इसे मृत्युदंड नहीं मिला।
मृच्छकटिकम , फाह्यान व स्कन्दगुप्त के जूनागढ़ अभिलेख से प्रमाणित होता है कि गुप्तकाल में दण्ड व्यवस्था कठोर नहीं थी।
विशाखदत्त -
मुद्राराक्षस - मौर्यकाल की जानकारी।
देवीचंद्रगुप्तम - गुप्तकाल की जानकारी। अनुपलब्ध ग्रन्थ।
रामचन्द्र व गुणचंद्र द्वारा लिखित ' नाट्यदर्पण ' में देवीचंद्रगुप्तम के कुछ अंश मिलते हैं।
इस पुस्तक से रामगुप्त अस्तित्व में आया।
शक आक्रमणकारियों ने रामगुप्त की पत्नी ध्रुवदेवी को बन्दी बना लिया।
रामगुप्त के भाई चन्द्रगुप्त द्वितीय ने स्त्रीवेश धारणकर शक राजा को परास्त किया और ध्रुवदेवी को ले आया।
बाद में रामगुप्त को परास्त कर स्वयं शासक बन गया।
गुप्तवंश के कायर शासक रामगुप्त के बारे में सर्वप्रथम जानकारी।
1924 में राखलदास बनर्जी ने रामगुप्त के इतिहास का निर्धारण किया था।
वाग्भट्ट -
अष्टांग संग्रह - चिकित्सा शास्त्र पर लिखा गया ग्रन्थ।
धन्वंतरी -
चन्द्रगुप्त द्वितीय के नवरत्नों में से एक।
नवनितकम - चिकित्सा शास्त्र पर लिखा गया ग्रन्थ।
पालकाप्पव -
हस्त्यायुर्वेद - हाथियों की चिकित्सा पर लिखा गया ग्रन्थ।
MPI लेख -
महरौली लौह स्तम्भ लेख -
चन्द्र नामक राजा पर 7 लाइनें लिखी हुई है।
चन्द्रगोमिन -
चंद्र व्याकरण - गुप्तकाल में भारत पर हूणों के आक्रमण की जानकारी देने वाला ग्रन्थ।
गुप्तकाल में भारत पर आक्रमण करने वाले एकमात्र विदेशी - हूण।
स्कन्दगुप्त द्वारा हूणों की पराजय का वर्णन।
वामन -
काव्यालंकार प्रकाश -
समुद्रगुप्त को चंद्रप्रकाश इसी ग्रन्थ में कहा गया है।
इसी ग्रन्थ के आधार पर डॉक्टर श्रीराम गोयल ने बताया है कि महरौली लौह स्तम्भ लेख का चंद्र नामक राजा समुद्रगुप्त था।
लेकिन अधिकतर विद्वान इस लेख के चंद्र राजा को चंद्रगुप्त द्वितीय से जोड़ते हैं।
भट्टी -
भट्टी काव्य ( रावण वध )
भर्तुरमेन्ट ( हस्तिपक ) -
हयग्रीव वध
असंग -
बुद्धिष्ट दार्शनिक।
गुप्तकाल के एकमात्र बौद्ध लेखक।
प्रमुख रचनाएँ - योगाचार , भूमि शास्त्र , बृज घंटिका।
योगाचार - महायान का उप - सम्प्रदाय।
नारायण भट्ट ( नारायण पंडित ) -
हितोपदेश के रचयिता।
वराह मिहिर -
चंद्रगुप्त द्वितीय के नवरत्नों में से एक।
गुप्तकालीन खगोलशास्त्री व ज्योतिषी।
रचनाएँ - पंचसिद्धांतिका , वृहत्संहिता , वृहतोजातक , लघुजातक।
पंचसिद्धांतिका - ज्योतिष के 5 सिद्धांतों का वर्णन।
वराह मिहिर - " यद्यपि यवन ( यूनानी ) म्लेच्छ हैं , किन्तु ज्योतिष के ज्ञान के कारण इन्हें पूजनीय माना जाता है। "
वृहत्संहिता -
इसमें जमीन को उपजाऊ बनाने , जमीन से पानी निकालने व बीजों की गुणवत्ता बढ़ाने की विधि का उल्लेख मिलता है।
अमरसिंह -
चंद्रगुप्त द्वितीय के नवरत्नों में से एक।
अमरकोश - भूमि के 12 प्रकारों का उल्लेख।
रेशम बनाने की विधि का उल्लेख।
हरिषेण -
समुद्रगुप्त के दरबारी कवि।
API लेख -
प्रयाग प्रशस्ति ( इलाहाबाद स्तम्भ लेख ) के रचयिता।
प्रयाग प्रशस्ति पर हरिषेण की रचना को खुदवाने का कार्य तिलभट्ट ने किया था।
वर्तमान इलाहाबाद के निकट स्थित कोसम नामक स्थान की पहचान कौशाम्बी के रूप में की गई है।
प्रयाग प्रशस्ति मूलतः अशोक का अभिलेख है।
अशोक ने कौशाम्बी में यह लेख खुदवाया।
बाद में इसके अधिकांश भाग पर समुद्रगुप्त ने प्रयाग प्रशस्ति उत्कीर्ण करवाई।
अकबर ने इस अभिलेख को कौशाम्बी से इलाहाबाद स्थानांतरित करवाया।
जहाँगीर ने भी इस पर कुछ लिखवाया था।
बीरबल ने भी खाली जगह भरने का कार्य किया।
वत्सभट्टी -
मंदसौर प्रशस्ति के रचयिता।
वज्जिका -
गुप्तकाल की एकमात्र महिला लेखिका।
कौमुदी महोत्सव की रचयिता।
कामन्दक -
नीतिसार -
इससे पता चलता है कि गुप्तकाल में कर व्यवस्था उदार सिद्धान्तों पर आधारित थी।
फाह्यान - " गुप्तकाल में कर व्यवस्था अधिक कठोर नहीं थी। "
रामायण , महाभारत और पुराणों का अंतिम रूप से संकलन गुप्तकाल में माना जाता है।
सर्वाधिक स्मृति ग्रन्थ गुप्तकाल में लिखे गए।
बृहस्पति स्मृति , याज्ञवल्क्य स्मृति , नारद स्मृति , पराशर स्मृति आदि इसी काल में लिखे गए।
स्मृति ग्रन्थ - वे ग्रन्थ , जिनमें प्राचीन भारत के सामाजिक नियम मिलते हैं।
नारद स्मृति -
दासों के प्रकारों का उल्लेख।
ब्राह्मणों के विशेषाधिकार।
दास प्रथा से मुक्ति का पहली बार उल्लेख।
फाह्यान -
भारत में समय - 399 से 414 ईस्वी।
चंद्रगुप्त द्वितीय का समय - 375 से 412 ईस्वी।
फाह्यान ने अपने विवरण में कहीं भी राजा चंद्रगुप्त का नाम नहीं लिखा है।
फाह्यान का यात्रा विवरण - फो क्यो की।
फाह्यान भारत में स्थलमार्ग से आया व जलमार्ग से गया।
फाह्यान चीन से भारत स्थलमार्ग से आया था।
फाह्यान की भारत यात्रा -
चीन - मध्य एशिया - अफगानिस्तान - पाकिस्तान - पंजाब - भारत - बंगाल का ताम्रलिप्ति बंदरगाह - श्रीलंका - जलमार्ग से चीन।
मध्य एशिया -
फाह्यान ने मध्य एशिया के खोतान में गोमती विहार का उल्लेख किया था।
अफगानिस्तान -
अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध की सबसे बड़ी प्रतिमा का उल्लेख भी फाह्यान ने किया है।
बाद में तालिबान ने इस प्रतिमा को तोड़ दिया था।
पाकिस्तान -
वर्तमान पाकिस्तान में पेशावर व रावलपिंडी का क्षेत्र गांधार कहलाता था।
कला की गान्धार शैली का विकास पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान के स्वात व बामियान के क्षेत्र में हुआ था।
इस शैली को ग्रेको बुद्धिष्ट आर्ट भी कहा जाता है।
इस शैली में बुद्ध की प्रतिमाओं का निर्माण हुआ।
निर्माण करने वाले कलाकार यूनानी थे। अतः इस कला पर यूनानी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
इस शैली में बनी बुद्ध की प्रतिमाएं यूनानी देवता अपोलो की तरह दिखाई देती है।
यूनान में प्रकाश , स्वास्थ्य व पवित्रता के देवता - अपोलो।
हीनयान सम्प्रदाय में बुद्ध को देवता न मानकर केवल महापुरुष माना गया है।
प्रथम शताब्दी ईस्वी में महायान सम्प्रदाय के विकास के साथ ही बुद्ध को देवता माना गया और बुद्ध प्रतिमाओं का निर्माण प्रारंभ हुआ।
सर्वप्रथम बुद्ध प्रतिमाओं का निर्माण मथुरा में हुआ।
बाद में गान्धार शैली में भी बनी।
मथुरा - भारतीय कलाकार।
गान्धार - यूनानी कलाकार।
पुष्पपुर - वर्तमान पाटलिपुत्र ( पटना )
फाह्यान ने पुरुषपुर ( पेशावर ) में कुषाण शासक कनिष्क प्रथम ( 78 से 101 ईस्वी ) के द्वारा बनवाए गए स्तूप का उल्लेख किया है।
कुषाण चीन के थे।
अफगानिस्तान के लोग कनिष्क को बहुत मानते हैं।
कनिष्क के नाम की सबसे ज्यादा होटले अफगानिस्तान में है।
कनिष्क के समय चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ।
भारत -
फाह्यान ने भारत में भारत में मध्य देश ( वर्तमान उत्तरप्रदेश व बिहार का क्षेत्र ) की स्थिति का सर्वाधिक उल्लेख किया है। वह लिखता है कि भारत में दण्ड व्यवस्था उदार सिद्धान्तों पर आधारित है। लोगों को मकानों का पंजीकरण नहीं करवाना पड़ता है।
व्यापार के लिए कौड़ियों का प्रयोग होता है , न कि सिक्कों का।
गुप्तकाल के शासकों द्वारा विशेष घटनाओं की स्मृति में सिक्के चलाये गए थे।
समुद्रगुप्त ने वीणावादन प्रकार के सिक्के चलाये थे।
व्याघ्रहनन , धनुर्धर , अश्वमेघ , अश्वारोही , पर्यंक राजा प्रकार , पर्यंक राजा रानी प्रकार।
समुद्रगुप्त की उपाधि - कविराज।
फाह्यान भारत में बौद्ध ग्रंथों के अध्ययन के लिए आया था।
फाह्यान ने बुद्ध के जन्मस्थल नेपाल में स्थित कपिलवस्तु की भी यात्रा की।
कपिलवस्तु को फाह्यान ने उजाड़ स्थिति में पाया।
गुप्तकालीन कला
भारत में सर्वप्रथम मन्दिरों का निर्माण गुप्तकाल में माना जाता है।
मन्दिर का पवित्र भाग गर्भगृह कहलाता है।
गर्भगृह में देवी देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित की जाती है।
मन्दिर निर्माण की शैलियाँ -
नागर , द्रविड़ , बेसर।
नागर व द्रविड़ शैली के मन्दिरों में अंतर -
नागर शैली के मन्दिर जमीन के समतल बनते थे , जबकि द्रविड़ शैली के मन्दिर ऊँचे चबूतरों पर बनते थे।
नागर शैली के मन्दिरों में सीढियाँ कम , जबकि द्रविड़ शैली के मन्दिरों में सीढियाँ अधिक होती थी।
नागर शैली के मन्दिरों की छतें सपाट होती थी या ऊपर गुम्बद होता था , जबकि द्रविड़ शैली के मन्दिरों में विशाल शिखर होते थे।
गुप्तकाल में मन्दिरों की चौखट के ऊपर मकरवाहिनी गंगा ( मगरमच्छ पर आसीन ) व कूर्मवाहिनी गंगा का देवियों के रूप में अंकन मिलता है।
देवगढ़ का दशावतार मंदिर -
गुप्तकाल का सबसे प्रमुख मंदिर।
उत्तरप्रदेश के ललितपुर में स्थित।
पंचायतन शैली में निर्मित।
इस पर द्रविड़ शैली का प्रभाव भी दिखता है।
इस मन्दिर में विष्णु के अनंतशायी रूप की प्रतिमा मिलती है।
राजस्थान में गुप्तकाल का सबसे पहला मंदिर - झालरापाटन का शीतलेश्वर मंदिर। ( भारतीय इतिहास की पुस्तकों के अनुसार , कोटा का दर्रा मन्दिर। )
भारत में सर्वप्रथम मूर्तिपूजा के प्रमाण प्राक आर्ययुग ( पाषाण काल ) में मिलते हैं।
गुप्तकाल के अधिकांश मन्दिर पत्थरों के बने थे , किन्तु कानपुर का भीतर गाँव मन्दिर व सिरपुर ( छत्तीसगढ़ ) का लक्ष्मण मन्दिर ईंटो से बने थे।
कानपुर के भीतर गाँव मन्दिर में विष्णु प्रतिमा स्थापित थी।
गुप्तकाल में विष्णु की शार्डिंग के नाम से भी पूजा होती थी।
गुप्तकाल के अधिकांश मन्दिर मध्यप्रदेश में स्थित हैं।
साँची का मन्दिर , एरण व तिगवाँ का विष्णु मन्दिर , नचना कुठार का पार्वती मन्दिर व भूमरा का शिव मन्दिर।
भारतीय इतिहास में राजस्थान के गुप्तकालीन मन्दिरों में कोटा के दर्रा मन्दिर का नाम आता है।
राजस्थान इतिहास में गुप्तकाल के प्रारंभिक मन्दिरों में झालरापाटन ( झालावाड़ ) का शीतलेश्वर मंदिर आता है।
गुप्तकाल में मथुरा में ब्राह्मण , बौद्ध व जैन धर्म की प्रतिमाओं का निर्माण हुआ था।
कुमारगुप्त - 415 से 455 ईस्वी।
उत्तरप्रदेश के एटा से 415 में प्राप्त कुमारगुप्त का पहला अभिलेख विलसद लेख है।
कुमारगुप्त के समय के मन्दसौर अभिलेख में तंतुवाय श्रेणी ( जुलाहा - बुनकर ) का उल्लेख मिलता है।
यह श्रेणी लाट प्रदेश ( गुजरात ) में रहती थी , जिसे छोड़कर दशपुर ( पश्चिमी मालवा - मध्यप्रदेश ) चली गयी।
दशपुर में सूर्यमंदिर का निर्माण करवाया गया।
भारत में त्रिमूर्ति की पूजा , अर्धनारीश्वर की पूजा व हरिहर की पूजा व मूर्ति निर्माण का प्रचलन गुप्तकाल में प्रारंभ हुआ।
उत्तरप्रदेश के सुल्तानगंज से प्राप्त बुद्ध की ताम्र प्रतिमा गुप्तकाल की सबसे प्रमुख प्रतिमा है।
मथुरा संग्रहालय से प्राप्त बुद्ध की खड़ी पाषाण प्रतिमा भी गुप्तकाल की प्रमुख प्रतिमा मानी जाती है।
चित्रकला -
अजन्ता महाराष्ट्र के औरंगाबाद में जलगांव रेलवे स्टेशन के पास फरदापुर गाँव से 10 किलोमीटर आगे स्थित है।
अंग्रेजों की मद्रास सेना की टुकड़ी के द्वारा अजन्ता की गुफाएं खोजी गई।
अलेक्जेंडर कनिंघम ने सर्वप्रथम यहाँ की गुफाओं के चित्रों को प्रकाशित करवाया था।
अजन्ता की गुफाओं के चित्र बौद्ध धर्म से संबंधित है।
अजन्ता की गुफाओं के चित्रों का निर्माण काल दूसरी से सातवीं शताब्दी ईस्वी माना जाता है।
गुप्तकाल - तीसरी से छठी शताब्दी ईस्वी।
गुप्तकाल में अन्य वंश -
वाकाटक वंश -
महाराष्ट्र में।
स्थान - विदर्भ।
चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह इसी वंश में हुआ।
अजन्ता की गुफाओं के चित्र गुप्त - वाकाटक युग में बने थे।
गुप्तकाल में महाराष्ट्र में वाकाटक वंश राज्य कर रहा था।
अजन्ता में कुल 29 गुफाएं हैं।
अधिकांश गुफाओं के चित्र नष्ट हो चुके हैं।
गुफा नम्बर 1 , 2 , 9 , 10 , 16 व 17 के चित्र ही सुरक्षित अवस्था में है।
9 व 10 पूर्व गुप्तकाल तथा 1 व 2 गुप्तोत्तर काल की गुफाएं हैं।
16 व 17 ही गुप्तकाल से सम्बंधित गुफाएं हैं।
माधुपायी दंपत्ति , लोभी ब्राह्मण जुजुक , कृष्णवर्ण सुंदरी के चित्र मिलते हैं।
16वी गुफा का सबसे प्रमुख चित्र - मरणासन्न राजकुमारी का चित्र।
मरणासन्न राजकुमारी नन्द की पत्नी सुंदरी मानी जाती है।
कला के सभी विद्वानों ने इस चित्र की प्रशंसा की है।
पूरी दुनिया में सबसे प्रभावी भावनाओं का अंकन इसी चित्र में हुआ है।
मोनालिसा की रहस्यमयी मुस्कान जानने को सभी विद्वान आतुर है।
17वी गुफा का बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण का चित्र भी प्रसिद्ध चित्र है।
29 वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्ति के लिए बुद्ध के गृहत्याग की घटना महाभिनिष्क्रमण कहलाती है।
17वी गुफा का माता व शिशु ( यशोधरा व राहुल ) का चित्र भी प्रसिद्ध चित्र है।
जातक कथाओं का सर्वाधिक चित्रण भी 17वी गुफा में मिलता है।
इस गुफा के चित्र सर्वाधिक सुरक्षित अवस्था में है।
इस गुफा को चित्रशाला भी कहा जाता है।
अजन्ता के समीप ही एलोरा की गुफाएं भी है। यहाँ पर ब्राह्मण , जैन व बौद्ध धर्म से संबंधित 34 गुफाएं हैं।
बाघ की चित्रकला -
गुप्तकालीन गुफायें।
मध्यप्रदेश के ग्वालियर के समीप विंध्य पर्वतमाला में स्थित।
गुफाओं के समीप बहने वाली नदी बाघिनि के नाम पर बाघ नाम पड़ा।
इन गुफाओं को सर्वप्रथम डेंजर फील्ड के द्वारा खोजा गया।
यहाँ पर 9 गुफाएं हैं।
गुफा नम्बर 4 व 5 को रंगमहल भी कहा जाता है।
बाघ की गुफाओं के चित्र आम जन जीवन या लौकिकता से अधिक संबंधित है।
विज्ञान
अष्टांग हृदय - वागभट्ट।
नवनीतकम - धन्वन्तरी।
हस्त्यायुर्वेद - पालकाप्पव।
वृहत्संहिता - वराह मिहिर।
महरौली लौह स्तम्भ लेख ( MPI ) -
गुप्तकालीन विज्ञान का सर्वप्रमुख उदाहरण।
गुप्तकालीन प्रमुख गणितज्ञ आर्यभट्ट का जन्म कुसुमपुर ( पाटलिपुत्र ) में हुआ।
आर्यभट्ट ने कुसुमपुर ( पाटलिपुत्र ) में शिक्षा प्राप्त की।
इन्होंने पाई ( 22/7 ) के मान का निर्धारण किया।
यह भी बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर परिक्रमा करती है।
सूर्यग्रहण व चंद्रग्रहण के बारे में भी बताया।
ब्रह्मगुप्त -
गुप्तकालीन खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त राजस्थान में भीनमाल ( जालोर ) के बताए जाते है।
ग्रन्थ - ब्रह्मस्फुट।
इन्होंने न्यूटन के सिद्धांत ( गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत ) की पूर्व कल्पना कर ली थी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें