सर्वप्रथम अरस्तू ने दर्शनशास्त्र में " आत्मा का अध्ययन " शुरू किया , जिसे "प्राचीन मनोविज्ञान" और अरस्तू को " मनोविज्ञान का जनक " कहते हैं।
1590 ईस्वी में रूडोल्फ गोइकले ने " साइकोलोजिया " नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में आत्मा के अध्ययन के लिए पहली बार साइकोलॉजी शब्द का प्रयोग किया।
साइकोलॉजी मूल रूप से " ग्रीक भाषा" का शब्द है।
देकार्ते ने ( 1596-1650 ) आत्मा के अध्ययन की विषयवस्तु को भौतिकशास्त्र में जोड़ने का प्रयास किया , तब आत्मा के अध्ययन के अभिप्राय को लेकर एक विवाद शुरू हो गया और निम्न प्रकार से इसका अर्थ बदला -
1. आत्मा के अध्ययन के रूप में -
* अरस्तू के काल से 16वी सदी तक।
* प्रस्तुतकर्ता - अरस्तू।
* समर्थक - प्लेटो , रुडोल्फ गोइकले , डेकार्टे।
* आत्मा क्या है? इसका स्वरुप क्या है ? कहाँ है ? - जैसे सवालों के कारण यह अर्थ अस्वीकार्य हुआ।
2. मन के विज्ञान के रूप में -
* 17 वी सदी से 1870 ईस्वी तक।
* प्रस्तुतकर्ता - पोम्पोनॉजी ( इटलीवासी )
* समर्थक - हॉब्स , लॉक , स्पिनोजा।
* मन और मस्तिष्क में क्या अंतर है ? मन कितने हैं ? - जैसे सवालों से यह अर्थ भी अमान्य हो गया।
3. चेतना के विज्ञान के रूप में -
* 1870 से 1900 ईस्वी तक।
* प्रस्तुतकर्ता - विलियम जेम्स।
* समर्थक - विलियम वुण्ट , जेम्स सली , वाइन्स , रिचनर , चैडविक।
* सवाल -
( 1 ) मनोविश्लेषण सिद्धांत के अनुसार चेतन के रूप - चेतन , अर्द्धचेतन , अचेतन है।
( 2 ) मैक्डूगल के अनुसार , चेतना शब्द असभ्य शब्द है।
( 3 ) सिग्मंड फ्रायड ने अपने मनोविश्लेषण सिद्धांत और मैक्डूगल ने अपनी पुस्तक " आउटलाइन साइकोलोजी " में जो जानकारी प्रस्तुत की , उसके आधार पर चेतना का विज्ञान अर्थ सबसे कम समय में समाप्त हुआ।
4. व्यवहार के अध्ययन के रूप में -
* 20 वी सदी से अब तक।
* प्रस्तुतकर्ता - वॉटसन।
* वॉटसन ने कहा कि " व्यवहार एकमात्र विशेषता है जो जीवन में कभी माइनस नहीं होता और धनात्मक रूप से बढ़ता जाता है। "
इसलिये इन्होने मनोविज्ञान को व्यवहार का धनात्मक विज्ञान कहा है।
* " सकारात्मक , धनात्मक , पॉज़िटिव , विधायक विज्ञान ही मनोविज्ञान है। "
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