शिक्षा मनोविज्ञान - शिक्षा की अवधारणा


शिक्षा एक ऐसा शब्द है , जिसका अभिप्राय कई प्रकार से लगाया जा सकता है , जबकि वास्तव में शिक्षा शब्द एक ऐसी अवधारणा के रूप में प्रचलित है , जो मनुष्य को मनुष्य बनाती है , जन्म के समय मनुष्य भी पशु तुल्य होता है। परन्तु शिक्षा ही  वह  प्रक्रिया है जो उसे पशु से उत्तम बनाती है।

शिक्षा शब्द वैदिक काल में प्रचलित हुआ था , उस काल में शिक्षा के केन्द्र गुरुकुल होते थे और गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान रुपी प्रकाश प्रदान करते हुए अज्ञान रूपी अन्धकार से मुक्ति प्रदान करते थे।

आज भी हिंदी शब्दकोष में गुरु शब्द का अर्थ है - ' अन्धकार से प्रकाश की ओर  ले जाने वाला। '

अर्थात शिक्षा शब्द का वास्तविक अर्थ हुआ - " प्रकाशित करने वाली " या " परिमार्जित करने वाली  प्रक्रिया। "

शिक्षा के विभिन्न अर्थ 

1.  प्राचीन एवं वास्तविक अर्थ - " प्रकाशित करना " या " परिमार्जित करना "

2. प्रचलित अर्थ - " सीखने - सिखाने की क्रिया "

3. संकीर्ण अर्थ - " विद्यालय या महाविद्यालय में पढ़ना "

4. व्यापक अर्थ - " एक ऐसी सतत प्रक्रिया , जो प्रत्येक परिस्थिति में व्यक्ति के व्यवहार को परिष्कृत करती है। "

 शिक्षा की परिभाषायें 

" शिक्षा से मेरा अभिप्राय है - मनुष्य के शरीर , आत्मा और मस्तिष्क का सर्वांगीण व सर्वोत्तम विकास। "

-महात्मा गांधी 


" शिक्षा बालक की आंतरिक अभियोग्यताओ का समरस , स्वाभाविक एवं प्रगतिशील विकास करती है। "

-पेस्टोलॉजी


" शिक्षा बालक की पूर्वनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करती है। "

-स्वामी विवेकानन्द 


" शिक्षा बालक की आंतरिक शक्तियों को बाह्य शक्तियों का रूप देती है। "

-फ़्रॉबेल 


" जिस प्रकार से फसल के लिए कृषि होती है , उसी प्रकार मनुष्य के लिए शिक्षा होती है। "

-जॉन लॉक 


"शिक्षा बालक की अंतर्निहित शक्तियों का विकास करती है। "

-कॉलसनिक 


निष्कर्षतः कहा जा सकता है  कि एक बालक में पायी जाने वाली बीजरूप शक्तियों को विकसित करना शिक्षा का कार्य है। जिस प्रकार से एक बीज तब तक पौधा नहीं बन सकता , जब तक कि उसे उचित प्रकाश , वायु और नमी प्राप्त नहीं होती। ठीक उसी प्रकार से एक बालक बिना शिक्षा के वास्तविक रूप में अपना विकास नहीं कर सकता। 






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