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RPSC first Grade उत्कर्ष प्रिंटेड कोचिंग नोट्स ( PDF ) भारतीय इतिहास

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उत्कर्ष कोचिंग नोट्स Rpsc 1st Grade मौर्य काल

 मौर्य काल

साहित्य , कला व विज्ञान का विकास


समय -

322 से 184 BC

चंद्रगुप्त मौर्य - चंद्रगुप्त ने 24 वर्ष तक शासन किया।

समय - 322 से 298 BC


बिन्दुसार - 

समय - 298 से 273 BC


अशोक - 

समय - 273 से 232 BC


मौर्यों का मूल स्थान - नेपाल का पिप्पलिवन नामक स्थान।

राज्य प्रारंभ क्षेत्र - मगध।

मगध - वर्तमान बिहार के पटना , गया , शाहबाद का सम्मिलित क्षेत्र।


मौर्यों का वर्ण -

जैन व बौद्ध ग्रंथ - क्षत्रिय।

ब्राह्मण ग्रन्थ - शुद्र।


मौर्य वंश के शासकों का धर्म -

मौर्य वंश के शासक अलग अलग धर्मों के अनुयायी रहे हैं।

चन्द्रगुप्त - जैन धर्म

अशोक - बौद्ध धर्म

सम्प्रति - जैन धर्म


184 BC में ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने वृहद्रथ को मारकर शुंग वंश की स्थापना की।


 मौर्यकालीन साहित्य


मौर्यकाल के बारे में जानकारी ब्राह्मण , जैन , बुद्ध व विदेशी साहित्य से मिलती है।


मौर्यकाल में लिखे गए प्रमुख ग्रंथ - अर्थशास्त्र , कल्पसूत्र व इण्डिका।


ब्राह्मण साहित्य - 

विष्णु पुराण - 

पुराण संख्या में 18 है। 

पुराणों के 5 लक्षण बताए गए हैं।

पुराण कब से लिखना प्रारंभ हुए , इसके बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती है।

पुराण सबसे ज्यादा गुप्त काल में लिखे गए।

पुराणों का अन्तिम रूप से संकलन गुप्त काल में माना जाता है।

पुराणों को इतिहास के प्रामाणिक साधन के रूप में नहीं माना जाता है , क्योंकि पुराण भविष्य में होने वाली घटनाओं का भी उल्लेख करते हैं।


पतंजलि का महाभाष्य -

उत्तर मौर्य काल में शुंग वंश के समय रचित।

पतंजलि - पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित।


विशाखदत्त का मुद्राराक्षस - 

गुप्तकाल के लेखक।

देवीचंद्रगुप्तम के रचयिता - गुप्त काल से सम्बंधित रचना। अनुपलब्ध।

मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त मौर्य के लिए वृषल ( कुलहीन या निम्न कुल में उत्पन्न ) शब्द का प्रयोग हुआ है।


कौटिल्य का अर्थशास्त्र - 

अर्थशास्त्र की पांडुलिपि खोजने वाला व्यक्ति 1904 में शाम शास्त्री था।

यह धार्मिक ग्रंथ न होकर धर्मेतर साहित्य है।

राजनीति से सम्बंधित ग्रन्थ।

15 अधिकरण

180 प्रकरण

6000 श्लोक

कौटिल्य स्वयं को द्विजवर्षभ ( श्रेष्ठ ब्राह्मण ) कहता है।


मौर्यों का वर्ण -

कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में परोक्ष रूप से मौर्यों को क्षत्रिय बताया है।

कौटिल्य का कथन - राजा भले ही कमजोर हो , लेकिन क्षत्रिय कुल का होना चाहिये।


अर्थशास्त्र की तुलना निम्न ग्रंथों से की जाती है - 

 पॉलिटिक्स - अरस्तू।

अरस्तू यूनान के दार्शनिक थे।

समय - ईसा पूर्व की शताब्दी।

गुरु - प्लेटो

शिष्य - सिकन्दर महान ( अलेक्ज़ेंडर )


द प्रिंस - मेकियावली। 

मेकियावली 12वी - 13वी सदी में इटली में हुआ था।


अर्थशास्त्र नाम की सार्थकता -

चार पुरुषार्थों में से अर्थ में न केवल धन को , अपितु सुख संपत्ति और ऐश्वर्य प्रदान करने वाले सभी साधनों को शामिल किया जाता है।

राजनीति भी अर्थ पुरुषार्थ के अंतर्गत शामिल है। इसीलिए इस ग्रन्थ का अर्थशास्त्र नाम युक्तिसंगत है।


राज्य का सप्तांग सिद्धांत -

अर्थशास्त्र के छठे अधिकरण - मंडल योनी में राज्य के सप्तांग सिद्धांत का उल्लेख मिलता है।

सप्तांग सिद्धांत - राज्य का निर्माण 7 तत्वों से मिलकर होता है।

7 तत्व - 

स्वामी ( राजा )

अमात्य ( मंत्री )

राष्ट्र

दुर्ग

बल

कोष

मित्र


दास प्रथा - 

अर्थशास्त्र में दास प्रथा का उल्लेख मिलता है। दासों के कई प्रकार मिलते हैं - 

ध्वजाहत दास - युद्ध में बन्दी बनाए गए लोगों को दास बनाना।

अहितक दास - अस्थायी दास। कुछ समय के लिए बना हुआ दास।

लब्ध दास - दान में प्राप्त हुआ दास।

दायजात दास - दासी से उत्पन्न पुत्र दास।

क्रीतदास - क्रय किया गया दास।

दण्डप्रणीत दास - सजा के परिणामस्वरूप बनाया गया दास।

आत्मविक्रयी दास - जिसने स्वयं को बेच दिया हो।


विदेश नीति - 

अर्थशास्त्र में सबसे अधिक राजनीति की विदेश नीति का उल्लेख हुआ है।

विदेश नीति को दौत्यम कहा गया है।

अधिकरण 9 से 15 में विदेश नीति का उल्लेख हुआ है।


कौटिल्य पर विवाद -

अर्थशास्त्र को लेकर विवाद है कि यह मौर्यकाल की रचना है या नहीं , क्योंकि इस ग्रन्थ में किसी भी मौर्य शासक का नाम नहीं है , ना ही पाटलिपुत्र का उल्लेख है।

मेगस्थनीज व पतंजलि ने भी अपने ग्रन्थों में मौर्यकाल में कौटिल्य का उल्लेख नहीं किया है।


सोमदेव का कथासरित्सागर और क्षेमेन्द्र की वृहत्कथामन्जरी भी मौर्य काल की जानकारी देते है। 

लेकिन ये दोनों ग्रन्थ भी मौर्य काल में नहीं लिखे गए।


कल्हण की राजतरंगिणी -

कल्हण ब्राह्मण था।

कल्हण 12वी सदी का लेखक था।

मौर्यों के 1500 साल बाद हुआ था।

कश्मीर के लोहर वंश के राजा हर्ष व जयसिंह के समय कल्हण ने राजतरंगिणी ग्रन्थ लिखा।

इसमें लिखा है , " मौर्य शासक अशोक ने कश्मीर में शिव मंदिर बनवाया है। " लेकिन मौर्य काल में मंदिर निर्माण शुरू नहीं हुआ था।

अशोक द्वारा बनवाया गया शिव मंदिर भी अप्राप्त है।


जैन साहित्य - 

मौर्यकाल में अकाल पड़ने की जानकारी केवल जैन साहित्य से ही मिलती है।

जैन मंदिरों को ' स्थानक ' कहा जाता है।

सबसे ज्यादा जैन धर्म के लोग गुजरात में रहते हैं।

गुजरात में चालुक्य वंश के शासक अजयपाल ( 1172 से 1176 ) ने जैन धर्म के भिक्षुओं को मौत के घाट उतारने का आदेश जारी किया , तब ये लोग राजस्थान के दुर्लभ क्षेत्रों में चले गए थे।


भद्रबाहु का कल्पसूत्र - 

चन्द्रगुप्त भद्रबाहु के प्रभाव से जैन धर्म का अनुयायी बन गया।

इस ग्रन्थ से पता चलता है कि चंद्रगुप्त मौर्य के अंतिम समय में 12 वर्षीय भीषण अकाल पड़ा। चंद्रगुप्त अपने पुत्र बिन्दुसार को राज्य सौंपकर श्रवणबेलगोला ( हासन , कर्नाटक ) चला गया।

यह बात पुरातात्विक प्रमाणों से भी साबित होती है।

यहां पर आज भी चंद्रगुप्त के नाम के स्मारक है। यहाँ पर चंद्रगिरी गुफा में चन्द्रगुप्त ने तपस्या की थी।

यहाँ पर चंद्रवस्ती नामक मंदिर भी बना हुआ है।


हेमचन्द्र का परिशिष्ट पर्व - यह भी मौर्यकाल में नहीं लिखा गया।

गुजरात के चालुक्य वंश के समय का लेखक।

मौर्य काल के 1400 - 1500 साल बाद का लेखक।

कुमारपाल चालुक्य हेमचन्द्र के प्रभाव से जैन धर्म में दीक्षित हुए थे।

अशोक के समय तृतीय बौद्ध संगीति के आयोजन की जानकारी।

अशोक ने भारत से बाहर बौद्ध धर्म के प्रचारकों को भेजा था।

पुत्र महेन्द्र व पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए लंका भेजा था।


दिव्यावदान - 

दिव्यावदान में अशोक को क्षत्रिय बताया गया है।


मिलिन्दपन्हो - 

उत्तर मौर्यकाल का ग्रन्थ।

मिलिन्द का असली नाम - मिनांडर।

बैक्ट्रियन ग्रीक शासक मिनांडर व बौद्ध भिक्षु नागसेन के मध्य हुए वार्तालाप का वर्णन।

मिनांडर - मोक्ष क्या होता है ?

नागसेन - समुद्र से गहरा। अर्थात जो पाता है , वही समझ सकता है।

नन्द शासक घनानंद को मारकर चंद्रगुप्त ने मौर्यवंश की स्थापना की थी।

घनानंद व चन्द्रगुप्त के मध्य युद्ध का वर्णन करने वाला एकमात्र ग्रन्थ।

अर्थशास्त्र - " पराजित राजा के साथ उदारता का व्यवहार करना चाहिए। "

अतः हम जैन धर्म के इस तथ्य पर विश्वास करते है कि चन्द्रगुप्त ने घनानंद को पराजित करके उसकी पुत्री के साथ उसे जाने दिया।


आर्यमंजुश्री मूलकल्प - 

सर्वाधिक लंबे समय के इतिहास की जानकारी देने वाला एकमात्र ग्रन्थ।


थेरीगाथा - 

बौद्ध धर्म का ग्रन्थ।

बौद्ध धर्म में गृहत्यागी पुरूष - थेर।

गृहत्यागी स्त्रियां - थेरी।

बौद्ध धर्म में भिक्षु - भिक्षुणी को थेर - थेरी कहा जाता है।

जैन धर्म में - श्रमण - श्रमणी।


विदेशी साहित्य - 

मेगस्थनीज की इण्डिका -

305 BC में चन्द्रगुप्त ने यूनानी सेल्यूकस को पराजित किया था।

बाद में दोनों के मध्य सन्धि हो गई।

सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को अपना राजदूत बनाकर चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा।

मेगस्थनीज का भारत में समय - 304 BC से 299 BC

मेगस्थनीज ने जो देखा , वही लिखा।

इण्डिका उपलब्ध नहीं है।

यूनानी व रोमन लेखकों के विवरण में इण्डिका के अंश मिलते हैं।

इण्डिका के यूनानी व रोमन अंशों को संकलित करने वाला पहला व्यक्ति 1846 ईस्वी में स्वानबेग था।

इनका अंग्रेजी अनुवाद 1891 ईस्वी में मेक्रिण्डल ने किया था।

मेगस्थनीज यूनानी था। अतः हमारे देश की व्यवस्था को पूरी तरह समझ नहीं पाया। इस कारण उसने कुछ गलतियां कर दी।


अंगरक्षक -

मेगस्थनीज के अनुसार , चन्द्रगुप्त स्त्री अंगरक्षकों से घिरा रहता था।


जातियां - 

भारतीय समाज को 7 जातियों ( मेर ) में विभक्त करता है -

दार्शनिक

कृषक

शिकारी व पशुपालक

व्यापारी व शिल्पी

योद्धा

निरीक्षक

मन्त्री


दास प्रथा - 

मेगस्थनीज के अनुसार , भारत में दास प्रथा नहीं थी। यह गलती उससे इसलिए हुई क्योंकि भारत में दासों को परिवार के सदस्यों की तरह रखा जाता था , जबकि यूनान में दासों के साथ पशुवत व्यवहार होता था।


वर्ण व्यवस्था - 

मेगस्थनीज भारत में वर्ण व्यवस्था का भी उल्लेख नहीं करता है।


लेखन कला -

मेगस्थनीज के अनुसार , भारत के लोग लेखन कला से परिचित नहीं थे।


एरियन इण्डिका -

यूनानी लेखक एरियन ने भी इण्डिका नाम से ग्रन्थ लिखा था , जिसे एरियन इण्डिका कहा जाता है।


चीनी लेखकों के विवरण -

फाह्यान - 399 से 414 ईस्वी ( चंद्रगुप्त द्वितीय के समय )

ह्वेनसांग - 629 से 645 ( हर्षवर्धन के समय )

इत्सिंग - 671 ईस्वी।


फाह्यान के अनुसार चन्द्रगुप्त ने राजभवन ( राजप्रासाद ) बनवाया था , जिसको देखकर लगता है कि यह मनुष्यों द्वारा निर्मित न होकर देवताओं द्वारा निर्मित है।

स्पूनर ने इसी को आधार बनाकर खुदाई करवाई।


फाह्यान के अनुसार , अशोक ने लोगों को सजा देने के लिए पाटलिपुत्र में एक नर्क बनवाया था।

बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पहले अशोक अत्याचारी राजा था।

ह्वेनसांग के अनुसार , उसने अशोक द्वारा बनवाए गए नर्क की दीवारों को देखा था।


इत्सिंग के अनुसार , उसने अशोक की बौद्ध भिक्षु के रूप में मूर्ति देखी थी।

अशोक बौद्ध धर्म का भिक्षु नहीं था।


अन्य यूनानी व रोमन लेखकों का विवरण -

स्ट्रेबो , जस्टिन , डायोडोरस , एरियन , प्लूटार्क व प्लिनी जैसे लेखकों ने भी मौर्यकाल के बारे में लिखा है।

प्लूटार्क व प्लिनी रोमन लेखक है।

प्लिनी ने ' नेचुरल हिस्ट्री ' नामक पुस्तक लिखी।

विदेशी लेखकों स्ट्रेबो , जस्टिन , एरियन

ने चन्द्रगुप्त को सेन्ड्रोकोट्स व प्लूटार्क ने एंड्रोकोट्स कहा है।

सबसे पहले विलियम जोन्स ने इन नामों का तादात्म्य चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ बिठाया।

विलियम जोन्स ने ' रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल ' की स्थापना की।


मौर्यकालीन कला 


पर्सी ब्रॉउन , हैवेल , विंसेंट स्मिथ , बर्जेस , कुमारस्वामी , फर्ग्यूसन व वासुदेव शरण अग्रवाल जैसे इतिहासकारों ने भारतीय कला के क्षेत्र में कार्य किया था।


विंसेंट स्मिथ - " कला के क्षेत्र में पत्थरों का प्रयोग मौर्यकाल में अपनी पूर्णता की ओर पहुँच गया था। "


वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार , " अशोक को स्तम्भ बनाने की प्रेरणा ईरान से नहीं मिली। "


चन्द्रगुप्त मौर्य के समय के कला के स्मारक ज्यादा नहीं मिलते। इसका कारण यह बताया जाता है कि चन्द्रगुप्त के समय कला के क्षेत्र में लकड़ी का प्रयोग ज्यादा हुआ था।


फाह्यान के विवरण को आधार बनाकर स्पूनर ने पटना के समीप बुलन्दी बाग  व कुम्रहार जैसे स्थानों पर खुदाई करवाई , तो चन्द्रगुप्त के समय के राजभवन के अवशेष प्राप्त हुए।


रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख - संस्कृत का एकमात्र मौर्यकालीन साक्ष्य।

भारत का पहला शुद्ध संस्कृत का अभिलेख।

इसे स्कन्दगुप्त का जूनागढ़ अभिलेख भी कहते है।


शक शासक रुद्रदामन प्रथम ( 130 से 150 ईस्वी ) -

जूनागढ़ या गिरनार लेख से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने उर्जयत पर्वत से बहने वाली सुवर्ण सिकता व पलासिनी नदियों के पानी को रोककर सुदर्शन झील का निर्माण वेश्य पुष्यगुप्त की सहायता से करवाया था।

अशोक ने सुदर्शन झील से नहरें यवनराज तुशास्फ की सहायता से निकलवायी।


दुर्ग निर्माण कला -

अर्थशास्त्र में दुर्ग निर्माण का उल्लेख मिलता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि चन्द्रगुप्त के समय दुर्ग निर्माण कला अस्तित्व में थी।


यूनानी लेखकों ने पाटलिपुत्र को पालीब्रोथा कहा है।

पालीब्रोथा की नगर निर्माण योजना का उल्लेख मेगस्थनीज ने किया था। इससे पता चलता है कि चन्द्रगुप्त के समय नगर निर्माण कला भी थी।

बाद में स्ट्रेबो ने भी इसका उल्लेख किया था।

स्ट्रेबो ने इण्डिका को अविश्वसनीय ग्रन्थ बताया।


मौर्य काल मे कला का सर्वाधिक विकास अशोक के समय हुआ।

अशोक ने स्तूप , स्तम्भ व गुफा कला का विकास किया।


स्तूप -

स्तूप - मिट्टी का ढ़ेर।

 स्तूप शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद में मिलता है। 

स्तूप कला का ज्यादा सम्बन्ध बौद्ध धर्म के साथ जोड़ा जाता है।

प्रारम्भ में स्तूप केवल बुद्ध के अवशेषों पर ही बनाये गए थे।

अशोक द्वारा बनवाए गए 84000 स्तूपों को पुष्यमित्र शुंग ने नष्ट करवा दिया था।

अशोक के द्वारा निर्मित साँची का स्तूप सर्वाधिक प्रसिद्ध है।

थड़ा - थूहा - मिट्टी का ढ़ेर।

जसवन्त थड़ा।

पहले स्तूप केवल बुद्ध के अवशेषों पर बने थे।


स्तूप के भाग -

मेधी - चबूतरा

यष्टि - स्तम्भ

वेदिका - स्तूप के चारों ओर की दीवार

गर्भगृह - मंदिर का पवित्र भाग

हर्मिका - स्तूप का पवित्र भाग

मेधी , अण्ड ,यष्टि , हर्मिका , छत्र , वेदिका , प्रदक्षिणा पथ व तोरण द्वार होते हैं।

स्तूप का पवित्र भाग हर्मिका कहलाता है।


साँची का स्तूप -

अशोक द्वारा निर्मित प्रसिद्ध स्तूप साँची का स्तूप है।

साँची का स्तूप मध्यप्रदेश में भोपाल के समीप स्थित कनखेड़ा की पहाड़ियों में है।

साँची के स्तूप में स्तूप के सभी भाग मिलते हैं।

ब्राह्मण धर्म की शालभंजिका नामक स्त्री की आकृति भी इस स्तूप पर अंकित है।

शालभंजिका का स्तूप पर अंकन यह बतलाता है कि ब्राह्मण धर्म व बौद्ध धर्म में समन्वय हो रहा था।

कपिल मुनि की तुलना ब्रह्मा के साथ की जाती है।

सारनाथ स्तूप ( इलाहाबाद ) व तक्षशिला ( वर्तमान पाकिस्तान का पेशावर व रावलपिंडी का क्षेत्र कंधार जनपद कहलाता था। कंधार की राजधानी तक्षशिला थी। ) स्थित धर्मराजिका स्तूप भी मौर्य काल में निर्मित हुए थे।


स्तम्भ -

अशोक को स्तम्भ बनवाने की प्रेरणा ईरानी राजाओं से प्राप्त हुई।

वासुदेव शरण अग्रवाल अशोक के स्तम्भों को ईरानी स्तम्भों की नकल नहीं मानते हैं।


अशोक के स्तम्भों व ईरानी स्तम्भों में अंतर -

अशोक के स्तम्भ ( यष्टि ) ऊपर से पतले व नीचे से चौड़े है। जबकि ईरानी स्तम्भ ऊपर से नीचे एक समान है।

अशोक के स्तम्भ बिना किसी आधार के जमीन में गाड़े गए हैं जबकि ईरानी स्तम्भ चौकी के ऊपर स्थित है।

अशोक के स्तम्भ एक ही पत्थर के बने हुए हैं जबकि ईरानी स्तम्भ पत्थर के अलग - अलग टुकड़ों से बने हैं।

अशोक के स्तम्भ स्वतंत्र रूप से मिलते हैं जबकि ईरानी स्तम्भ स्वतंत्र न मिलकर भवनों में लगे हुए मिलते हैं।

अशोक के सभी स्तम्भों पर कोई न कोई पशु आकृति मिलती है जबकि ईरानी स्तम्भों पर कोई पशु आकृति नहीं मिलती।


अशोक का सारनाथ सिंह शीर्ष स्तम्भ -

स्तम्भ के भाग -

यष्टि - ऊपर से पतला व नीचे से चौड़ा स्तम्भ।


अधोमुख कमल - यष्टि के ऊपर स्थित उल्टा कमल।


फलका या चौकी - अधोमुख कमल के ऊपर स्थित चौकी। 

चौकी के मध्य में 24 तीलियों वाला चक्र बना हुआ है।

चक्र के चारों ओर चार पशु आकृतियां बनी हुई है - गज , अश्व , बैल , सिंह।


पशुशीर्ष - चौकी के ऊपर पीठ सटाये हुए चार सिंह।

सारनाथ स्तम्भ के पास नीचे टूटा हुआ चक्र मिला है। विद्वानों के अनुसार , यह चक्र चार सिंहों के ऊपर लगा हुआ था। इसमें 32 तीलियाँ मिली है। इसे धर्मचक्र कहा जाता है।


अशोक के अलग - अलग स्तम्भों में पशु शीर्ष अलग - अलग मिलते हैं। 


अशोक के साँची स्तम्भ पर भी सारनाथ स्तम्भ की तरह चार सिंहों की आकृति मिलती है।

साँची स्तम्भ की तुलना में सारनाथ स्तम्भ में सिंह अधिक अच्छी आकृति के बने हुए हैं , इसीलिए सारनाथ स्तम्भ के सिंहों को ही राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में स्वीकार किया गया है।

अशोक के रामपुरवा स्तम्भ ( उत्तर प्रदेश ) पर वृषभ या बैल की आकृति व संकिसा स्तम्भ ( इलाहाबाद ) पर गज आकृति मिलती है।

अशोक के लोरिया नन्दनगढ़ स्तम्भ ( बिहार ) पर एक सिंह की आकृति मिलती है जबकि लोरिया अरराज स्तम्भ ( बिहार ) पर कोई पशु आकृति नहीं मिलती है।

डॉक्टर आर पी चंदा ने संभावना व्यक्त की है कि लोरिया अरराज स्तम्भ पर गरुड़ की आकृति हो सकती थी।


गुफा कला -

मौर्यकाल में गुफा कला का भी विकास हुआ।

गुफा कला का विकास भिक्षुओं के चौमासा के समय रुकने के लिए हुआ था।

अशोक ने बराबर पहाड़ी ( बिहार ) पर सुदामा , कर्ण चौपड़ व विश्व झोंपडी गुफा का निर्माण करवाया।

इसी पहाड़ी पर अशोक के उत्तराधिकारी दशरथ के द्वारा लोमेश ऋषि की गुफा का निर्माण करवाया गया।

कला की दृष्टि से लोमेश ऋषि की गुफा सर्वश्रेष्ठ है।

अशोक के उत्तराधिकारी दशरथ ने नागार्जुन पहाड़ी ( बिहार ) पर तीन गुफाओं का निर्माण करवाया - गोपिका , वडथिक , वहियक गुफा।


यक्ष - यक्षिणियों की प्रतिमा -

मौर्यकालीन लोक कला के अंतर्गत यक्ष व यक्षिणियों की मूर्तियों का निर्माण किया गया।

मथुरा के समीप परखम गांव से मणिभद्र नामक यक्ष की प्रतिमा मिली है।

यक्ष - यक्षिणी - देवताओं के सहायक।

राजघाट ( वाराणसी ) से त्रिमुख यक्ष की प्रतिमा मिली है।

मथुरा के समीप बड़ौदा , झींग का नगरा , पटना व उड़ीसा से भी यक्ष - यक्षिणियों की प्रतिमाएं मिलती है।